How do you enjoy a movie in Theatre?

How do you enjoy a movie in Theatre?

How do you enjoy a movie in Theatre? मेरी बात बुरी लगेगी, पर बहुत से लोगो को फिल्म देखने का तरीका, तमीज है ही नही। ऐसे लोग किसी फिल्म को लेकर खुद का कोई ओपिनियन बना ही नही पाते है, बस दूसरो की तरफ मुंह ताकते रहते है कि कोई बताए की हम जो फिल्म देखे है वो कैसी है। बहुत से लोग बस जैसी धारा वैसा बहाव वाले फार्मूले को पकड़ लेते हैं।कुछ ऐसे होते है जिन्हे उल्टी धारा का नशा होता है, तो वो हर पॉपुलर ओपिनियन के खिलाफ जायेंगे, भले उनसे वजह पूछो तो बगले झांकने लगे। आपने तीन घंटे कोई फिल्म देखी, तो वो अच्छी है या बुरी है, उसकी एक वजह आपके दिमाग में जरूर आएगी।

पर अगर आप के दिमाग के कन्फ्यूजन है, तो आपको फिल्म देखना नही आता है, मनोरंजन के लेवल पर भी नही। इसलिए अगली बार कोई फिल्म देखने से पहले और देखते वक्त ये स्टेप यूज कर सकते हैं। यकीन मानिए, कुछ दिन में मुझसे बेहतर फिल्म समझने लगेंगे। How do you enjoy a movie in Theatre?

पहला स्टेप

फिल्म एक डिश की तरह है जो परदे पर आपको परोसी जाती है, बहुत से लोगो की मेहनत होती है उसमे, पर एक आदमी होता है जिसके हिसाब से सब चलते है। वो है फिल्म का बावर्ची, कुक शेफ, डायरेक्टर। आम तौर पर लोग फिल्म देखने कैसे जातें है? टीजर ट्रेलर, फिर दस रिव्यू पढ़ेंगे देखेंगे, चार लोगो से पूछेंगे और फिर जायेंगे देखने। ये सभी चीजे इस तरह से है जैसे आप गुलाबजामुन खाकर समोसा खाने बैठे हो। आप की जुबान पर गुलाब जामुन की मिठास पहले से है, समोसे का चटपटापन उस मिठास से टकराकर अलग ही टेस्ट बनाएगा जो कि समोसे का ओरिजिनल टेस्ट नही है।

इसलिए खुद से काबिल बनिए, अपनी तर्क शक्ति पर यकीन रखिए, और अपने लिए फिल्मे खुद चुनिए, किसी रिव्यू, या किसी युटुबर के हिसाब से टिकट कभी मत खरीदिए। दूसरो के बताए रीजन पर अगर आप फिल्म देखने गए तो आप डायरेक्टर की फिल्म नही देख रहे है, आप उसकी फिल्म देख रहे है जिसकी सलाह मानकर आप देखने आए है।

दूसरा स्टेप

फिल्म का कलाकार, या कोई भी दाया बाया आपको पसंद नही है, आपकी विचारधारा उसके ख्यालात के खिलाफ है, तो मेरे दोस्त मत जाओ देखने फिल्म प्लीज मत जाओ। पर अगर फिर भी देखने जा रहे हो तो उससे अपना झगड़ा थियेटर के बाहर रखकर जाओ। फिल्म का एक्टर, डायरेक्टर, या कोई भी असल जिंदगी में क्या करता है, क्या बोलता है, क्या सूंघता है ये सब अगर आपने दिमाग में रखकर फिल्म देखी तो भाई आप कांटे वाले चम्मच से खीर खा रहे हो, मुंह में जो जा रहा है, उससे ज्यादा नीचे गिरा रहे है आप। इसलिए, कलाकार से दोस्ती दुश्मनी का फैसला टिकट लेने से पहले ही कर ले, देखने जाए तो ना दोस्ती रखे न दुश्मनी।

तीसरा स्टेप

आपने टिकट खरीद लिया है, बहुत रईस आदमी है तो उड़ा दीजिए पैसे और फिल्म के दौरान मोबाइल चलाते रहिए। पर अगर आप इतने रईस नही है, और सच में सिनेमा का आनंद लेना चाहते है तो थिएटर में कदम रखते ही खुद को फिल्म के हवाले कर दीजिए। मत सोचिए कि कहानी क्या है, ना ही बीच में दिमाग लगाइए कि कहानी कैसी होनी चाहिए, ये चीज ऐसे नही वैसे करना चाहिए था, यहां पर ये नही वो होना चाहिए था। कुछ भी नही, एक दम सादा कागज फीकी जुबान लेकर फिल्म देखना शुरू करिए। जो फिल्म आप तीन घंटे में देखकर निपटाने वाले है, डायरेक्टर को सालो लगे है बनाने में। How do you enjoy a movie in Theatre?

आप उसकी फिल्म को अच्छा कहिए, बुरा कहिए, ये अधिकार है आपका। पर अगर वो डायरेक्टर आपको थिएटर की सीट तक लेकर आने में कामयाब हो गया है तो कही न कही उसने आपके तीन घंटे और तीन सौ रुपए जीत लिए है। इसलिए तीन घंटे खामोशी से खुद के दिमाग को डायरेक्टर के हवाले करिए, वो जो दिखा रहा है, जैसे दिखा रहा है देखिए। फिल्म जज करने का दो ही सही मौका होता है, या तो टिकट खरीदने से पहले, या फिर फिल्म के एंड क्रेडिट खत्म होने के बाद।क्युकी फिल्म दो भागो में बनती ही नही कभी, फिल्म पूरी फिल्म होती है, इंटरवल आपके लिए है, कुछ लोग उसका इस्तेमाल फिल्म को बेहतर बनाने के लिए करते है, पर फिर भी, फिल्म का इंटरवल नही होता बॉस, आपके लिए होता है। How do you enjoy a movie in Theatre?

चौथा स्टेप

उम्मीद मत बांधिए, कि ऐसा होगा, वैसा होगा। डायरेक्टर की पिछली फिल्म से इंप्रेस हुए है तो उस फिल्म को थिएटर के बाहर रख कर आइए। किसी डायरेक्टर की पिछली फिल्म की तुलना उसकी अगली फिल्म से करना ऐसा ही है कि आप किसी के घर उसके दूसरे बच्चे के जन्म पर जाए और बच्चे के मां बाप से शिकायत करे कि पहले जैसा नही है ये वाला। अनुराग की कोई फिल्म देखने गैंग ऑफ वासेपुर दिमाग में बिठाकर जाओगे तो फिल्म बुरी ही लगेगी। डायरेक्टर का काम होता है अलग अलग चीजे परोसना, एक्सपेरिमेंट करना, रिस्क लेना।इसलिए आप अपनी तरफ से डायरेक्टर को टाइपकास्ट मत करिए की पिछली दो फिल्मे इसकी ये थी, हम वही दो को देखने के लिए ये तीसरी देखने का रहे है | How do you enjoy a movie in Theatre?

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पांचवा आखिरी स्टेप

फिल्म देख लीजिए, बाहर निकालिए, और अपने आप से पूछिए, बोर हुए है? फिल्म में डायरेक्टर क्या दिखाना चाहता था समझ आया है आपको? अगर आप को समझ नही आया तो रिव्यू पढ़िए,या यूट्यूबर भाई लोगो को देखिए, कुछ चीजे आपके दिमाग में खुलने लगेंगी। फिर उसके बाद जज करिए कि फिल्म कैसी है। इंटरवल तक जज करना, आधे पर जज करना ,ओपनिंग सिक्वेंस अच्छा लगा, क्लाइमैक्स नही जमा, ये सब बाते नाइंसाफी है डायरेक्टर के साथ और फिल्म के साथ।अगर आपने तीन घंटे खाली दिमाग से पूरी तवज्जो से फिल्म देखी है, तो आप को किसी के रिव्यू या लेख की जरूरत ही नही पड़ेगी, आप मजबूती से खुले दिमाग से ये फैसला कर पाएंगे कि फिल्म कैसी हैं।

आपको आपका टेस्ट समझ आयेगा, आपको फिल्म की बारीकियां समझ आयेंगी। बस तीन घंटे, मुकम्मल खुद को डायरेक्टर के हवाले करिए। कोई बावर्ची कुछ बना रहा है तो उसे बीच में मत टोकिए कि ये भी डालना वो भी डालना। सिनेमा ओपन किचन है, जहा डायरेक्टर तीन घंटे आपके सामने एक डिश बनाता है, तो उसे बनाने दीजिए, और एंड क्रेडिट के बाद जज करिए तीखा कम है, नमक कम है या जहर होना चाहिए था थोड़ा सा। और ये सलाह उन लोगो के लिए है जिन्हे सिनेमा का शौक है पर रिव्यू के इस भरे बाजार में बेचारे खो जाते है, और कंफ्यूज रहते है की जो देखकर आए है वो सच में अच्छा था या नही।

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